शनिवार, 19 दिसंबर 2015

इन्सुलिन: अग्न्याशय के द्वीप कोशों का अंत:स्राव

अगर कोई एक होर्मोन जिसके विषय में अधिकतर लोगों ने सुन रखा है तो वह शायद इंसुलिन ही है। 
हमारे स्वास्थय के लिये यह एक अत्यंत महत्वपूर्ण अंत:स्राव (hormone) है। 
चलिये आपको एक कहानी सुनाता हूँ।
 सन् १८५७ की क्रांति को विलायती हुकूमत ने बेदर्दी से कुचल दी थी। हताश हिंदुस्तान अपने अतीत एवं भविष्य का चिंतन कर रहा था। इसी समय १८६९ में जर्मनी की राजधानी बर्लिन में पॉल लैंगरहैंस नामक एक युवा वैज्ञानिक २२ वर्ष की उम्र में सूक्ष्मदर्शी से अग्न्याशय (Pancreas) का निरीक्षण करते हुए कुछ ऐसी कोशिका समूह की खोज की जो अग्न्याशय मेंद्वीपों की तरह बिखङी थी। इसी साल पोरबंदर में गाँधी जी का जन्म हुआ था। अग्न्याशय (जो की मूलत: पाचक रस का स्रवन करता है) में पाये जाने वाले इन  कोशिका समूह द्वीपों का क्या कार्य है किसी को मालूम ना था। समय गुजरता गया। बीस साल बाद १८८९, साल जब जवाहर लाल नेहरु का जन्म हुआ था,  पोलैंड-जर्मन मूल के आस्कर मिंकोवस्की ने एक प्रयोग किया-उसने एक कुत्ते का आपरेशन कर उसका अग्न्याशय निकाल दिया था। उसने यह पाया कि इस कुत्ते के पेशाब पर खूब मक्खियाँ लग रही थी- और पेशाब के निरीक्षण पर उसमें शुगर पाया गया। कुछ दिनों में उस कुत्ते की मौत हो गई। मधुमेह की बीमारी की जानकारी हमें चरक् के समय से थी। मगर किसी को पता ना था कि यह बिमारी होती क्यों है। 
आप जैसे जैसे विषुवत रेखा से ध्रुव की तरफ़ बढ़ते हैं, बच्चों में पाये जाने वाली मधुमेह की बिमारी (type 1 Diabetes- insulin dependent diabetes) ज्यादा दीखने को मिलती है। ऐसा सदियोंसे होता रहा है और आज भी सच है। लंदन में काम करते हुये मैंने इसे खुद महसूस किया है। बीसवीं  सदी के पूर्वार्ध का यूरोप और उत्तरी अमरीका के किसी अस्पताल के बच्चों के वार्ड के एक हिस्से में  इस बिमारी से ग्रस्त मरनासन्न बच्चों का भाग होता था, और बेबस माँ- बाप उनके मौत का इंतज़ार कर रहे होते थे। क्या दर्दनाक स्थिति होती होगी!
सन् १९२० का कनाडा, सुहाने गर्मी का मौसम बीत चुका है। पतझड़ का आगमन हो चुका है। सुदूर कनाडा मे काम करने वाले महाशय बेंटिंग अधुनिक विकसित होते शहर टोरोंटो को आते है। उनके इस अगमन का एक खास प्नयोजन है। टोरोंटो विश्वविद्यालय के प्राध्यापक महाशय मैक्ल्योइड शारीरिक विज्ञान के क्षेत्र में एक ख्याति प्राप्त व्यक्ति थे। बेंटिँग की मुलाकात महा• मैक्लोइड से होती है। महा• बेंटिँग का प्रस्ताव है कि शायद उन्हें मधुमेह की बिमारी का ईलाज़ मिल सकता है, मगर उन्हें और प्रयोग के लिये विश्वविद्यालय के प्रयोगशाला की ज़रूरत होगी। मह• मैकलियोइड इस प्रस्ताव से खासे प्रभावित तो ना थे, मगर कनाडा की भीषण सर्दी से राहत के लिये और अपने संबंधियों के बीच बड़े दिन की छुट्टी मनाने उनका स्कोटलैंड जाने कीयोजना थी। उन्होंने बेंटिँग को अपनी प्रयोगशाला में काम करने की अनुमति दे दी। उनहोंने अपने एक युवा विद्यार्थी बेस्ट को बेंटिँग की मदद करने का निर्देश भी दिया। बेंटिग और बेस्ट ने जो प्रयोग उस ठंडी प्रयोगशाला में किये वो चिकित्सा जगत में नये युग की शुरुआत साबित हुई। उन दोनों ने १२ कुत्तों पर अपने प्रयोग किये। उन्होंने कुत्तोंके अग्न्याशय को निकाल दिया। इससे कुत्तों मे मधुमेह की बिमारी हो गई- और तय था कि वो कुछ दिनों मे मर जायेंगे। बेंटिंग ने एक तकनीकि विकसित की थी - पॉल लैंगरहैंस द्वारा १९६९ में पहचाने पक्वाशय के द्वीपीय कोशिकाओं का शुद्ध सार निकालने की। इस सार तत्व को जब पक्वाशय रहित मधुमेह पीङित कुत्त्तों को इंजेक्ट किया गया तो उनके मधुमेह की बिमारी ठीक होने लगी। यह चमत्कारिक था। लैगरहैंस की द्वीपीय कोशिकाओं (islet cells of langerhans) के सारतत्व को इन्सुलिन कहा गया। 
सन् १९२१ में इसे और परिमार्जित कर मधुमेह पीङित मृत्यु शैय्या पर चेतनाहीन बच्चों में इसका प्रथम प्रयोग एक ज़ादू सा था। बच्चे ने आँखें खोली और परिजनों में आशा और खुशियों की लहर दौङ गई।
बेंटिँग और मैक्लियोइड को नोबेल पुरस्कार से नवाज़ गया। महामना बेंटिंग ने अपनी सफलता का आधा श्रेय और पुरस्कार राशि बेस्ट को दिया। बेंटिंग और बेस्ट का नाम इन्सुलिन की खोज करने के लिये सदा के लिये अमर हो गया।

श्री चार्ल्स बेस्ट और श्रीमान् फ्रेडरिक बेंटिँग।

अगले पोस्ट में इन्सुलिन की कहानी आगे चलेगी-------

रविवार, 22 नवंबर 2015

पीयूष ग्रंथि - सुल्तान -ए - अन्तःस्रावी दुनिया

सुल्तान -ए - अन्तःस्रावी दुनिया 

 अन्तःस्रावी ग्रन्थियों का सिरमौर पीयूष ग्रंथि ही है. इसे अंग्रेजी में pituitary (पिट्यूटरी ) ग्लैंड कहते हैं. 


यह मष्तिष्क के बिलकुल भीतरी भाग में, इसके अंतःस्थल में अवस्थित होता है. अगर आप अपनी जिह्वा की नोक से, तालु का सख्त भाग,  जो आगे की तरफ होता है, और पिछला मांसल भाग जहाँ मिलते हैं वहां स्पर्श करें, और कल्पना करें  कि  आप ऊपर के तरफ मस्तिष्क के अंदर जा रहें हैं तो शायद आप पीयूष ग्रंथि को पहुँच रहे हैं। योग विज्ञान में खेचरी मुद्रा का ज़िक्र आता है. योगी तालु के इस बिंदु पर जिह्वा से स्पर्श कर ध्यान लगाते हैं, और ऐसा वर्णन मिलता है कि उन्हें अमृत वर्षा की अनिभूति होती है।  मेरा ऐसा कोई अनुभव नहीं है।  यद्यपि यह बात विज्ञान के क्षेत्र से बाहर जाती हुई सी है मगर एक मज़ेदार तथ्य है जो इस तरफ इशारा करता हो कि  क्या पुराने समय के योगियों को पीयूष ग्रंथि की स्थिति और महत्व का एहसास था - शायद!  
 

यह एक वैज्ञानिक तथ्य है कि माँ  के गर्भ में जब भ्रूण विकसित हो रहा होता है तो विकास के क्रम में सख्त और मांसल तालु जहाँ मिल रहे होते हैं, वहां एक रंध्र होती है जिससे गुज़र कर एक ख़ास तरह की कोशिका ऊपर विकसित होते मस्तिष्क की तरफ चली जाती है और पीयूष ग्रंथि का निर्माण करती है. 

खैर हम आगे बढ़ते हैं. पीयूष ग्रंथि से कई तरह के हार्मोन का स्राव होता है जो हमारे शरीर को कई तरह से प्रभावित और नियंत्रित करता है.  प्रमुख हार्मोन ये हैं- 
१. ग्रोथ हॉर्मोन ( Growth Hormone): यह शरीर के विकास को नियंत्रित करता है- इसके आभाव में बच्चों की लंबाई नहीं बढ़ती, और शरीर  विकसित नहीं हो पाता. हालाँकि  यह ख्याल रखने की बात है कि ग्रोथ हॉर्मोन की कमी बौनेपन की शिकायत का एक बेहद rare असंभावित कारण है.  
२. TSH: थाइरोइड स्टिम्युलेटिंग हॉर्मोन : यह थाइरोइड ग्रंथि को नियंत्रित करता है. आम तौर पर अगर कोई व्यक्ति थाइरोइड हॉर्मोन की कमी का शिकार हो तो उसके रक्त जाँच  में TSH का स्तर बढ़ा होता है. 
३. ACTH: यह किडनी के ऊपर स्थित एक ग्रंथि  एड्रिनल ग्लैंड को नियंत्रित करता है. हम इसके बारे में फिर कभी बात करेंगे 
४. LH/ FSH: ये दो हॉर्मोन हैं जो पीयूष ग्रंथि से स्रावित हो दूरस्थ ovary और testes को नियंत्रित करते हैं. शरीर के यौन विकास  और यौन स्वास्थय के लिए इनका बेहद महत्वपूर्ण  योगदान होता है. 
५. Prolactin: प्रोलैक्टिन : यह एक ऐसा हॉर्मोन है जो माँ  और पिता में बच्चों के लिए जो स्वभाविक  स्नेह और प्यार होता है, का कारण है. प्रसूति के पश्चात  माँ के स्तन में दूध आने के लिए इसका महत्वपूर्ण योगदान होता है. . 
६. ऑक्सीटोसिन (oxytocin ) : सामाजिक एवं यौन सम्बन्ध व् सुख के लिए इसकी भूमिका है. माँ के दूध होने के लिए भी ये ज़रूरी है. 
७. वैसोप्रेसिन - vassopresin : यह हमारे शरीर में पानी की मात्रआ  को और रक्त चाप को नियंत्रित करता है. 

इस तरह से हम देख सकते हैं कि अंतःस्रावी ग्रंथियों का बादशाह पीयूष ग्रंथि हमारे शरीर को कई तरह से प्रभावित और नियंत्रित कर सकता है. इसी तरह इसके क्रिया कलाप में कोई खराबी आने से हमारा शरीर कई तरह से प्रभावित ओ सकता है. मगर शरीर की एक खासियत है की यह सुरक्षित कपाल के अंदर स्थित होता है और इससे सम्बंधित रोग की सम्भावना काफी कम होती है. 
कुछ बच्चे जन्मजात रूप से ही पीयूष ग्रंथि की खराबी के साथ साथ पैदा होते हैं और उनकी पहचान कर लेना बहुत ज़रूरी होता है, अन्यथा यह जान लेवा हो सकता है.  कई बार मस्तिष्क में होने वाले ट्यूमर ( ब्रेन tumor ) इसको प्रभावित कर सकते हैं. 

सच पूछे तो पीयूष ग्रंथि का कार्य बेहद महत्वपूर्ण और जटिल है जो साधारण  डॉक्टर्स के लिए भी एक पेचीदा सा मामला होता  है. मगर ईश्वर की लीला है की इससे सम्बंधित बीमारिया विरले ही होते हैं. 

अब आप पूछेंगे की अगर पीयूष बादशाह है तो फिर बेगम कौन हुई. - आपको बताना है की बादशाह पर परदे के पीछे से कौन नियंत्रण रक्खे है? 

अगर आपको इससे सम्बंधित कोई सवाल हो तो बताएं मैं अपनी क्षमता अनुसार उत्तर देने की कोशिस करूँगा. 
 
 






सोमवार, 5 जनवरी 2015

पारा थाइरॉयड ग्रन्थि

पारा थाइरॉयड ग्रन्थि 
एक लम्बे अवकाश के पश्चात पुनः अपने शरीर से सम्बंधित - अन्तःस्रावी ग्रंथियों की बात को आगे बढ़ाना चाहता हूँ. 

अब तक हमने पीयूष और थाइरॉयड की बातें की है.  आम तौर से लोग इनके बारे में परिचित भी होते हैं. मगर आज मैं बात करने जा रहा हूँ पारा थाइरॉयड की जिससे आपमें से कई परिचित न हों. 
 पारा थाइरॉयड हॉर्मोन की समस्या उतनी आम नहीं है.  फिर ही यह अपने शरीर का महत्वपूर्ण  इसलिए हमें इसके बारे में   चाहिए. 






आम तौर से अलग अलग ४ छोटे छोटे पारा थाइरॉयड ग्रंिथयां हमारे शरीर में पाई जाती हैं. ये थाइरोइड ग्रंथि के ही  पिछले भाग़ में चिपकी होती है. इसका आकर आधे सेंटीमीटर  डिस्क के जैसा होता है. 
कई बार जब ऑपरेशन कर थाइरॉयड ग्रंथि को शल्य  चिकित्सक निकाल रहे होते हैं तो यह खास सावधानी रखनी होती है कि पारा थाइरॉयड को बचा लिया जाय. आप जान कर हैरान होंगे की हम थाइरोइड के बगैर तो जीवित रह सकते हैं मगर पारा थाइरोइड के बगैर नही. 
इस ग्रंथि से निकलने वाले हॉर्मोन को पाराथोरमोन  कहते हैं. इसका सबसे महत्व पूर्ण कार्य है कि  यह हमारे रक्त में कैल्शियम की सही  मात्रा  को बनाये रखता है. अगर पारा थोरमोन न हो तो हमरे रक्त में कैल्शियम की भरी कमी हो जायगी और अंततः विभिन्न अंगों के न काम कर सकने की वजह से मृत्यु. 


इसीतरह अगर इसकी अधिकता हो जाय तो रक्त में कैल्शियम की मात्र बहुत  बढ़ जाती है. इस ग्रंथि में होने वाले ट्यूमर की वजह से ऐसा हो सकता है. यह औरतों में ज्यादा होने की सम्भावना होती है. इस स्थिति को hyperparathyroidism  ( हाइपर पारा थाइरॉइडिज्म ) कहते हैं. इसके मुख्या लक्षण हैं- थकन लग्न, हड्डियों में दर्द और आसानी से फ्रैक्चर हो जाना तथा रक्त जांच में कैल्शियम की अधिकता।  कई बार अगर किसी को कोई दूसरा भी कैंसर है तो ट्यूमर  एक ऐसे रसायन (PTHrP- parathyroid related peptide)  का स्राव करता है  जो इस हॉर्मोन की तरह कार्य करता  है और परिणामतः रक्त में कैल्शियम का स्तर  बढ़ जाता है.  तो कई बार अगर  रक्त में कैल्शियम का स्तर तो यह छिपे  कैंसर की निशानी हो सकती है. 
हमारे शरीर में ऐसा प्रबंध है की अगर किसी वजह से रक्त में कैल्शियम की कमी हो तो अपने आप पाराथोरमोन का स्राव बढ़ जाता है. पाराथोरमोन  कैल्शियम के स्तर को बढ़ने के लिए हमारी हड्डियों में जमा कैल्शियम को निकलने लगता है , मगर इससे हड्डिया खोखली और  कमजोर हो जाती हैं.  यह हालात अक्सर तब उत्पन्न होती है जब किसी को वृक्क ( किडनी) failure  हो जाय. 

वृक्क की बीमारी में कैल्शियम की कमी होने लगती है और पाराथोरमोन  का स्राव बढ़ जाता है. इस स्तिति को  लिए बाहर से अतिरिक्त कैल्शियम देने की जरूरत होती है. नहीं तो अस्थियां बहुत  कमजोर हो जाती हैं.