शुक्रवार, 6 अप्रैल 2012

दिल की बात 2 : दिल की धड़कन

मुझे याद है कि नोंवीं- दशवीं तक की पढाई के बाद भी जब मैं यह सोचता था कि इश्वर के होने का क्या प्रमाण है तो एक बात जो बिलकुल चमत्कृत सी करती थी कि दिल जो लगातार धड़क रहा है बगैर  मेरी इच्छा के; यह तो ईश्वरीय चमत्कार ही हो सकता है और क्या?

अब शायद न तो प्रमाण ढूँढने की कोशिश होती है न ही मैं चमत्कृत होता हूँ.


शरीर क्रिया विज्ञानं (physiology) की प्रायोगिक कक्षा में एक प्रयोग होता था. जीवित मेढक को बेहोश कर उसके दिल को निकाल कर उसे एक लवणीय घोल (saline  solution ) में रखा जाता था, शरीर से अलग, और वह अब भी कुछ   देर  के लिए धड़क रहा होता था. अब इस घोल में एक रसायन adrenaline मिलाया गया  और स्वतः दिल के धड़कन   की गति तेज हो जाती थी. सभी कुछ कितना मशीनी लगने लगता  था.


ह्रदय एक मांसल अंग है. यह मांसपेशियों से बना हुआ है. जबकि यकृत (लीवर), प्लीहा (स्प्लीन), वृक्क (किडनी) आदि अंग मांसपेशियों से बने नहीं हैं. मांसपेशी एक ख़ास तरह की उत्तक होती है जिसमे संकुचित होने और फिर शिथिल (relax) होने का गुण होता है. हाथ पैर की मांसपेशिया हमारे  इच्छा के अधीन होती हैं, और तभी संकुचित या शिथिल होती हैं जब हम चाहते  हैं, फलतः हम इच्छानुसार हाथ पैर को चला सकते हैं. मगर दिल की मांसपेशियों की कुछ खास  बात है  :

  • यह हमारी इच्छाओं के नियंत्रण से मुक्त है- स्वानुशासी (autonomous ) है
  • परन्तु यह दिमाग के कुछ ऐसे हिस्से  के कंट्रोल में है जिस पर हमारी इच्छाओं का नियंत्रण नहीं है - इसे Autonomic  nervous  सिस्टम कहते है.  
  • इन मांसपेशियों में दबी एक खास तरह की कोशिकाओं का समूह होता है जिसमे स्वत रुक  रुक कर विदुतीय आवेग बनते और मिटते रहते हैं. ये हमारे दिल के "पेस मेकर" हैं 
  • दिल जो सारे शरीर को रक्त पहुँचाने का पम्प   है , मगर इसके खुद की कोशिकाओं के पोषण के लिए धमनियों(arteries ) का एक जाल होता है जिसे "coronary  arteries  " कहते हैं.
दिल की plumbing : कोरोनरी नलिकाए 

पिछले पोस्ट से हम जान चुके हैं कि सारे शरीर का रक्त वेना कावा (vena  cava ) के द्वारा अंतत दिल के दाहिने आलिन्द में पहुँचता है और बायां निलय जो दिल का सबसे मजबूत पम्पिंग चैंबर है, एओर्टा (aorta ) के द्वारा सारे शरीर  में रक्त का सञ्चालन करता है.
मगर  दिल के उत्तक/कोशिकाओं को समुचित पोषण और oxygen   मिलता रहे इसके लिए एक अलग से व्यवस्था है  जिसे "कोरोनरी" सिस्टम कहते हैं 
बाएं निलय से जब शुद्ध रक्त पूरे शरीर के लिए पम्प होता है तो दिल से निकल कर सबसे पहले aorta  में आता है जो कि शरीर की सबसे बड़ी धमनी है. इसी aorta की सबसे पहली शाखा है कोरोनरी आर्टरी जो इस शुद्ध रक्त को वापस दिल में लाती है मगर इस बार दिल के कमरों (chambers ) में नहीं बल्कि दिल के दीवारों में- दिल की  सतत कार्यशील मांसपेशियों  के पोषण के लिए. एओर्टा की दूसरी शाखा होती है carotid आर्टरी जो शुद्ध रक्त को मस्तिष्क में पहुँचाने का काम करती है-- तो यहाँ प्रकृति ने  दिल को दीमाग के उपर रखा है. 

कोरोनरी शब्द लैटिन के "cor" से बना है जिसका मतलब है दिल. आपने अस्पतालों में अक्सर CCU  या ICCU लिखा देखा होगा जिसका मतलब है Coronary  केयर unit   या intensive  कोरोनरी केयर unit . 

कोरोनरी धमनी की दो शाखाये होती हैं लेफ्ट और राइट जो दिल के दाहिने और बाएं हिस्से  को रक्त का परिचालन  करती  हैं. अगर इस धमनी में कभी कोई अवरोध आ जाय और दिल की मांसपेशियों को रक्त आपूर्ति बाधित हो जय तो उसे हार्ट attack कहते है. अगर यह अवरोध आंशिक है तो दिल को   आपूर्ति   की कमी तभी महसूस होती है जब दिल ज्यादा काम कर रहा हो - और इसे angina (एंजाइना)  कहते हैं  









दिल की wiring :
पम्प के चलते रहने के लिए सतत विद्युत् सप्लाई भी होनी चाहिए. दिल के अन्दर  अपना   जेनरेटर होता है इसे SA node कहते हैं. यह बाएं आलिन्द के अन्दर दबी छिपी एक छोटी  सी बैटरी है जो रुक रुक कर विद्युतीय आवेग पैदा  करती है, यह आवेग शेष  सारे दिल में एक सूक्ष्म wiring  के द्वारा फैल  जाती है. SA  node किस दर से विद्युतीय आवेग पैदा कर रहा है वह हमारे दिल के धड़कन की दर को निर्धारित करता है. 

 SA  नोड के ऊपर दिमाग का भी कंट्रोल होता है जो इसके दर को तेज़ या कम कर सकती है. अगर SA  नोड या वायरिंग में कोई खराबी आ जाय तो दिल के धरकने की लय में खराबी आ जाती है जो कि कोई दिल की धरकन   को सुन कर या नब्ज़ की जांच कर के पता कर सकता है.   


दिल से सम्बंधित सबसे आम जांच है ई सी जी (ECG electro cardio gram) जो कि दिल के अन्दर विद्य्तीय आवेग के नियमित संचरण का ग्राफ है. अगर दिल के वायरिंग या प्लंबिंग में कोई अवरोध या खराबी है तो इस ग्राफ में वो देखा जा सकता है.





तो आज के लिए बस इतना ही. धन्यवाद.

चित्र गूगल से आभार.










  


"

शनिवार, 17 मार्च 2012

दिल की बात 1

दिल या हृदय- शरीर का एक ऐसा अंग जो अनवरत धड़कता रहता है. इसकी धड़कन ही हमारे जीवित होने का प्रमाण है. यह रुका  तो जीवन ख़त्म. 

मां  के  गर्भ  में  जब भ्रूण  करीब  ५-८ सप्ताह का होता है, तब से दिल की धडकन जो   शुरू  होती है तो फिर मृत्यु के साथ ही बंद होती है. कुदरत का करिश्मा है यह मुट्ठी भर का मांसल पम्प जो १०० वर्ष तक लगातार काम कर सकता है. और हम में से हर एक इस चमत्कार को अपने अन्दर लिए घूम रहे हैं. तो फिर आज इसी  की  बात  हो.

कहाँ है दिल?
हमारी छाती की  बायीं तरफ दो फेंफडों के बीच पसलियों के पीछे है अनवरत धडकता दिल. रक्त की बड़ी नलिकाये      इस तक रक्त को लाती हैं और इससे निकल  कर शरीर के बाकी हिस्से तक खून को पहुँचती हैं. 

दिल की संरचना: 


सरलतम शब्दों में कहा जाय तो दिल मांसपेशियों का बना एक पम्प है जिसके चार अलग अलग कक्ष (chambers) हैं. दो कक्ष दाहिनी तरफ और दो बायीं तरफ, या दो उपर के और दो नीचे के कक्ष. उपर के दो कक्ष को Atrium या आलिन्द कहते हैं और नीचे के दो को Ventricle या निलय.

 दाहिना आलिन्द (Right  atrium ) : वैसा रक्त जिसमे ओक्सीज़न कम और CO2  ज्यादा है  शिराओं (veins) से हो कर हृदय के दाहिने आलिन्द में पहुँचता है. आलिन्द निलय की तुलना में कम मांसल होता है. शरीर के विभिन्न हिस्सों से वापस आया रक्त, जिसका वांछित   ओक्सीज़न शरीर के द्वारा उपयोग कर लिया  गया है और जिसमे अनचाहा CO2  डाल दिया गया है वह सबसे पहले हृदय के इस कक्ष में पहुँचता है और फिर यंहा से एक वाल्व से गुजर कर दाहिने निलय   में पहुँचता है.  दाहिने आलिन्द के अन्दर एक ख़ास तरह की गाँठ जैसी संरचना होती है जिसे SA node कहते हैं. यह एक ऐसी  संरचना है जो लगातार रुक रुक कर एक विद्युतीय आवेग पैदा करती है ६० से १२० आवेग प्रति सेकेण्ड. यही   आवेग जब शेष हृदय की मांसपेशियों में फैलता है तो  उनका संकुचन होता है - जिसे हम दिल की एक धड़कन के रूप में महसूश   करते हैं.  

दाहिना  निलय (राईट Ventricle): दाहिने अलिंद में आया खून एक वाल्व से हो कर  दाहिने निलय में पहुँचता   है और जब निलय की मांसपेशी संकुचित होती है तो यही रक्त दोनों फेफड़ों में पम्प हो जाती है , जहाँ रक्त में फिर से ओक्सिजन की आपूर्ति होती है और co2 का निष्कासन. 
दाहिना निलय और बाएं निलय को अलग करती हुई एक मांसल दीवार होती है जिसे interventricular  septum कहते हैं. गर्भ में जब हृदय का निर्माण हो रहा होता है तो कभी कभी इसी दीवार में एक छेद सी रह जाती है जो की एक प्रकार का जन्मजात हृदय रोग  है इसे VSD (वेंट्रिकुलर सेप्टल defect ) कहते हैं. और इसके लिए कई बार ओपरेशन की जरूरत होती है.  

बायाँ आलिन्द (लेफ्ट atrium ): फेफड़ों से पुनः ओक्सीज़न युक्त हुआ रक्त वापस हृदय के बाएं आलिन्द में आता है. फिर एक वाल्व से हो कर यह बाएं निलय में पहुँचता है. इस वाल्व का नाम माइट्रल वाल्व है. रुमेटिक रोग में यही माइट्रल वाल्व संकरा हो जाता है जिसके लिए कई बार ओपरेशन की जरूरत हो सकती है.  

बायाँ  निलय (लेफ्ट Ventricle ): यह हृदय का सबसे मजबूत और मांसल कक्ष है. जब यह संकुचित होता है तो  दाहिने निलय की तुलना में कई गुना ज्यादा दबाव पैदा कर  सकता है. दाहिना निलय सिर्फ फेफड़ों में ही रक्त को पहुंचता है जबकि बायाँ निलय को पूरे शरीर में शुद्ध oxygen  पूरित रक्त की आपूर्ति करनी होती है. 
 
शेष अगले पोस्ट में..







शुक्रवार, 9 मार्च 2012

आयें झील सी आँख में झांके


स्वास्थ्य शब्दावली २ :

"आँखों से खुदा का नूर झलकता है"
"आपकी झील सी आँखों में डूब उतरने को जी चाहता है"
 हमारे  शरीर का कोई एक अंग जो हमें सबसे ज्यादा आकर्षित करता है विस्मित करता है तो वह है "आँखें"

साहित्य "नयनों" को अलग अलग तरह से वर्णित करता रहा है. इससे सम्बंधित कई शब्द हैं : जैसे - पलकें, पुतली, पलक पांवड़े, भावें / भृकुटी इत्यादि.

अब विज्ञानं की नज़र से इसकी झील सी गहराई में झांक कर देखते हैं.

भवें/भृकुटी (eye  brow ): हम सभी इसे जानते हैं.

पलकें (eye lid ): उपरी और नीचली. आँखों की सुरक्षा के लिय  जरूरी है; पलकों के झपकने  से ऑंखें सम रूप से आर्द्र बनी रहती हैं. कोई ऐसी स्थिति  जिससे की  अगर पलकें पूरी तरह से बंद न हों पायें तो आँखों के शुष्क हो कर स्थाई रूप से क्षतिग्रस्त हो जाने की संभावना होती है. इसलिए ऐसी स्थिति में यह बेहद महत्वपूर्ण है की पलकों को बंद कर उसके उपर टेप लगा दिया जाय खास कर सोने के समय.

कोर्निया (Cornea) : कोर्निया  की तुलना मैं  हाथ की घडी के शीशे से करूंगा. यह पारदर्शी है थोड़ी उभरी सी. आप इसके पीछे के परदे को देख सकते हैं और इस परदे का रंग आँख का रंह होता है. अगर कोर्निया की पारदर्शिता बिगड़ी या इसमें कोई खरोंच  आ जाय तो आपकी नज़र धुंधली या ख़त्म हो जायगी. किसी की आँख में सफ़ेद हिस्से के बीच जो काला हिस्सा होता है वह कोर्निया है - मगर हकीकत में यह रंगहीन  पारदर्शी है.
जब हम नेत्रदान की बात करते हैं तो दरअसल इसका मतलब होता कई कोर्निया का दान जो किसी और की आँख में प्रत्यारोपित कर दी जाती है .

स्क्लेरा(Sclera ) : आँख का सफ़ेद हिस्सा.   

कन्जन्क्ताइवा (Conjunctiva ) : यह स्क्लेरा के उपर एक पारदर्शी झिल्ली होती है जो पलकों के अंदरी हिस्से को भी ढके रहती है. इसका संक्रमण (infection) आँख की सबसे आम बीमारी है जिसे Conjunctivitis  कहते हैं. 


आइरिस (Iris) और प्युपिल  (pupil): "झील सी नीली" आँखों का नीलापन आइरिस की ही वजह से होता है. कोर्निया के पीछे एक पर्दा सा होता है जिसके बीच में एक गोलाकार छेद होता है. यह पर्दा है आइरिस और इसमें का छेद "प्युपिल" कहा जाता है. प्युपिल का आकार बड़ा और छोटा होता है. अगर ज्यादा रोशनी होती है तो यह सिकुड़ कर छोटी हो जाती है और अगर रोशनी कम है तो यह फैल कर बड़ी हो जाती है. 
कोई व्यक्ति जीवित है या नहीं इसका पता करने केलिए एक महत्वपूर्ण जांच है की आँख में तेज रोशनी डाली जाय और देखा जाय की प्युपिल सिकुड़ रही है या नहीं. 
आइरिस का रंग अलग अलग होता है जो हमारी आँखों को रंग देता है जैसे कला, भूरा , नीला, हरा आदि. इस परदे की सतह को अगर ध्यान   से देखें तो यह बेहद खुरदरी सी होती है और हर व्यक्ति में इस खुरदुरेपन का पैटर्न अलग अलग होता है जैसे की उँगलियों के निशाँ. इसीलिए कई जगह अब आइरिस के पैटर्न को व्यक्ति के पहचान के रूप में प्रयोग करते हैं.

लेंस (lens): आँख के अन्दर आइरिस के परदे के पीछे बाकायदा एक लेंस लगा होता है. और इस लेंस का पावर होता है +१०. अर्थात अगर किसी वजह से यह लेंस आँख से निकल दिया जय तो फिर आपको लगाना पड़ेगा मोटा सा +१० पावर का चश्मा. जब लेंस की पारदर्शिता ख़त्म हो जाती है तो इसे मोतियाबिंद (CATARACT ) कहते हैं. और इसका इलाज होता है ओपरेशन कर के खराब   लेंस को निकाल देना और फिर या तो मोटा चश्मा लगाना होता है(ऐसा अब कम ही होता है) या ओपरेशन के ही समय एक कृत्रिम लेंस आँख के अन्दर डाल देते है.       

रेटिना (Retina): अगर आँख  की तुलना एक कैमरे से करें तो रेटिना इस कमरे का "फिल्म रील" है. हमरी आँख एक खोखली गेंद की तरह है. इस गेंद का एक छोटा सा गोलाकार हिस्सा पारदर्शी है(कोर्निया) जो बाहर की रोशनी को गेंद के अन्दर आने देता है. यह किरण प्यूपिल के पीछे के लेंस से गुजर कर अंततः गेंद के पीछे के दीवाल की आतंरिक सतह पर पड़ती है. यह आतंरिक सतह ही रेटिना है. रेटिना में एक खास तरह की कोशिका पाई जाती है. इसके ऊपर प्रकाश की किरण पड़ने से यह विद्युतीय तरंग पैदा करती  है जो आँख की नाड़ी(ऑप्टिक nerve ) से गुजर कर दिमाग के उस हिस्से में  पहुँचती है जहाँ हम इसे एक दृश्य के रूप  में मह्शूश    करते है.
अगर अनियंत्रित डायबिटीज या रक्तचाप की लम्बी शिकायत हो तो रेटिना में खराबी उत्पन्न होने लगती है और अगर जल्दी उपाय न किया जाय तो व्यक्ति दृष्टि हीन हो जा सकता है.


आज के लिए बस इतना ही. फिर मिलेंगे. शुभ रात्रि !! शुभ प्रभात. 




















रविवार, 4 मार्च 2012

जीवन रहस्य की कुंजी:गुणसूत्र

स्वास्थ्य शब्दावली १ 






गुणसूत्र (chromosome - क्रोमोज़ोम )


आधुनिक जीव विज्ञान में हुई सबसे शानदार खोज गुणसूत्र का पता लगना  और समझना है. ये सूत्र/ डोर  के सामान  संरचनाएं हैं जो हर कोशिका की नाभि(nucleus ) में पाई   जाती हैं. जैसे  धागा अपने ऊपर ही उमठ  कर मोटा धागा बन जाता है और फिर उसे  खोलो तो लम्बी पतली डोर निकल आती  है - वैसे ही गुणसूत्र की रचना है. जीवन के सारे रहस्य इसमें   लिखे होते हैं - gene  जीन   के रूप में. गुणसूत्र यदि पुस्तक है तो जीन उसमे लिखे अलग अलग अद्ध्याय.
हमारा शरीर जैसा भी ही वैसा क्यों है इसका आधार ये गुणसूत्र ही हैं. हमारी हर कोशिका में गुणसूत्रों की एक नियत संख्या होती है - मानव कोशिकाओं में यह है २३ जोड़ी अर्थात कुल ४६.अगर इनकी संख्या किसी वजह से बदल जाय तो सारा कुछ गड़बड़ हो जाता है. इसका सबसे आम उदाहरण है "डाउन सिंड्रोम (Down  Syndrome ) "- जब इनकी संख्या ४६ की जगह ४७ हो जाती है - दरअसल २१ वें क्रम का गुणसूत्र जोड़ी की जगह तिकड़ी हो जाते हैं. परिणाम स्वरुप - इन बच्चों को शारीरिक और मानसिक विकास अलग सा होता है.

गुणसूत्र का एक काल्पनिक चित्र : यहाँ बस एक ही गुणसूत्र दिखाया गया है उसका जोड़ा नहीं. कोशिका के विभाजन के पूर्व गुणसूत्र   अपनी एक प्रतिकृति तैयार करता है जो अपने मूल के साथ जुड़ा होता है और इसीलिए यह ऐसा दीखता है. 

हर जोड़ी की एक प्रति माता से और दूसरी पिता से हमें हासिल होती है.और इसलिए शुक्राणु कोशिका(स्पर्म सेल) और अंडाणु कोशिका (Ovum) में ४६ की जगह २३ गुणसूत्र ही होते हैं. और इनके संगम से बने नए   जीवन में फिर   से सही संख्या ४६ हो जाती है.


मानव गुणसूत्रों को १ से २२ तक की संख्या का नाम दिया गया है जबकि २३ वां गुणसूत्र जिसे  लिंग गुणसूत्र sex  chromosme कहते हैं और वो दो तरह की होती हैं X  और Y  

इस जोड़े में अगर दो X  हुए तो आप मादा होते हैं और अगर X  Y  तो आप नर. बगैर  X  के जीवन संभव नहीं है. 

 एक जोड़ी के दोनों गुणसूत्र पर दरअसल समान "व्यंजनों"(गुणों) की ही "रेसिपी" लिखी होती है (सिवा XY  के) मगर उनमे थोडा सा फर्क हो सकता है- जैसे   किसी की "दाल"   में नमक ज्यादा   और किसी की दाल में कम; पर हैं तो दोनों दाल ही. परिणाम स्वरुप जो व्यंजन बनता है उसमे दोनों का मिला जुला असर आता है- जसे की बच्चे का रंग माँ और पिता के रंग का मिश्रण हो सकता है. हालाँकि  हकीकत इतना  सरल नहीं है.

यह पता करने के लिए की किसी के शरीर में इनकी संख्या सही है या नहीं -  एक प्रकार की खून की जांच की जाती है जिसे Karyotype  कहते हैं. भारत के बड़े शहरों में   यह जांच उपलब्ध है.     

शुक्रवार, 2 मार्च 2012

शरीर विज्ञान के मूल शब्द

आज कोई अंग विशेष से सम्बंधित न हो कर ऐसे शब्दों से शुरू कर रहा हूँ जो शरीर की मौलिक संरचना को समझने के लिए आवश्यक हैं:
  • कोशिका (सेल- cell): जैसे दीवार ईंटो  से बनी  होती  है शरीर कोशिकाओं से. कोशिका सबसे सूक्ष्म इकाई है जो जीवित होती है- जैसे अणु किसी भी पदार्थ का सूक्ष्मतम कण होता है जिसमे उसके सारे गुण विद्यमान हों. कोशिका इतनी छोटी है  की  हम उसे नंगी आँखों से नहीं देख सकते. मगर जब सूक्ष्मदर्शी (microscope) से देखें तो यह अपने आप  में एक पूरा संसार है. हमारे शरीर में सैकड़ों तरह की अलग अलग कोशिकाए होती है जो अलग अलग काम करती है. उदाहरण के तौर पर :
    • श्वेत रक्त कोशिका (white  blood  सेल)- रक्त के साथ बहती कोशिका जिसका काम संक्रमण के विरुद्ध लड़ना  है - तो यह है सबसे छोटा सिपाही/लड़ाकू.
    • न्यूरोन (neuron ) : एक बेहद खास तरह की कोशिका जिससे हमारा मष्तिष्क, मेरुदंड (spinal  chord) और नसें बनी हैं. यह शरीर के लिए एक तरह से processors  और wire  को बनाने की "ईंट" है.
    • epithelial  सेल (हिंदी शब्द मालूम नहीं): ये एक प्रकार  की बेहद   चिपटी कोशिकाए होती हैं जो आपस में मिल कर एक चादर सा बना लेती हैं जो अंगों को ढक लेता है- जैसे "प्लास्टर" दीवार को. हमारे त्वचा की सबसे बहरी परत इसी से बनी है.
कई सूक्ष्म   जीव होते हैं जिनका शरीर सिर्फ एक कोशिका का बना होता है.जैसे बैक्टेरिया , अमीबा, वायरस आदि.

शुक्राणु (स्पर्म सेल) एक खास तरह की कोशिका होती है जो एक द्रव माध्यम में गतिशील होती है. मगर आप क्या जानते हैं की   क्या खास बात है इस जीवन निर्माता कोशिका की?  उत्तर  फिर  कभी .

यह भी जानने की बात है की जब कैंसर होता है तो कहीं कोई एक कोशिका ही होती है जो विद्रोही हो जाती है और उसका विस्तार होने लगता   है.अब अलह अलग तरह की कोशिका तो अलग अलग तरह  के कैंसर!!

  • ऊत्तक (tissue ):  एक प्रकार की कोशिकाए  एक खास संरचना स्टाइल में आपस में मिलकर, एक कालोनी  जैसी    बना लेती हैं  और इसे ही उत्तक कहते हैं. तो अलग अलग उत्तक को जब सूक्ष्मदर्शी के अन्दर देखें तो उनका अलग अलग पैटर्न होता है. जब इस pattern  में गड़बड़ी होती है तो वह कैंसर की पहली निशानी होती है. उत्तक के विज्ञान को histology / histopthology कहते हैं.   


यह है चित्रकार द्वारा बनायीं तश्वीर, मगर microscope    के अन्दर अलग ही  दीखता है - ये रंग  असली  नहीं हैं, मूलतः कोशिकाएं रंगहीन होती   हैं मगर histopathologist उसे देखने के पहले उस पर रंग डाल देते हैं देखने की सुविधा  के लिए.  



तो फिर आज के लिए इतना ही. फिर मिलेंगे. खुदा हाफिज़ ! राम राम!

हमारा शरीर : हमारी भाषा

अभिवादन!
अपनी जुबान में आप सबों से "वर्धमान" के जरिये रूबरू तो होता रहा हूँ मगर हिंदी ब्लॉग जगत में शामिल होने का एक जो उद्देश्य था कि अपनी भाषा में शरीर और स्वस्थ्य के उपर कुछ लिखूं.थोड़ा प्रयास किया भी मगर अधूरा और असंतुष्ट ही रहा.

अब इस नए ब्लॉग "हमारा शरीर : हमारी भाषा" के जरिये एक नई और गंभीर कोशिश है. आप सबों का सुझाव और उत्साह वर्धन सदैव संबल रहा है और इसकी अपेक्षा रहेगी.

तो फिर आप सबों का स्वागत करे हुए "स्वान्तः सुखाय" का भाव ले कर और "बहुजन हिताय" की कामना के साथ इसकी शुरुआत करता हूँ.

धीरे धीरे बहुत सी बातें होंगी मगर शुरू कि जो योजना है, वह है स्वस्थ्य सम्बन्धी एक शब्द कोष  विकसित करने की. तो शुरुआत के कुछ पोस्ट में शरीर से सम्बंधित सामान्य शब्दों को समझाने कि कोशिश होगी. आशा है कि इससे हमें चिकित्सकों कि बातों को समझने में सुविधा होगी और अपनी बात समझाने में आसानी.