शुक्रवार, 9 मार्च 2012

आयें झील सी आँख में झांके


स्वास्थ्य शब्दावली २ :

"आँखों से खुदा का नूर झलकता है"
"आपकी झील सी आँखों में डूब उतरने को जी चाहता है"
 हमारे  शरीर का कोई एक अंग जो हमें सबसे ज्यादा आकर्षित करता है विस्मित करता है तो वह है "आँखें"

साहित्य "नयनों" को अलग अलग तरह से वर्णित करता रहा है. इससे सम्बंधित कई शब्द हैं : जैसे - पलकें, पुतली, पलक पांवड़े, भावें / भृकुटी इत्यादि.

अब विज्ञानं की नज़र से इसकी झील सी गहराई में झांक कर देखते हैं.

भवें/भृकुटी (eye  brow ): हम सभी इसे जानते हैं.

पलकें (eye lid ): उपरी और नीचली. आँखों की सुरक्षा के लिय  जरूरी है; पलकों के झपकने  से ऑंखें सम रूप से आर्द्र बनी रहती हैं. कोई ऐसी स्थिति  जिससे की  अगर पलकें पूरी तरह से बंद न हों पायें तो आँखों के शुष्क हो कर स्थाई रूप से क्षतिग्रस्त हो जाने की संभावना होती है. इसलिए ऐसी स्थिति में यह बेहद महत्वपूर्ण है की पलकों को बंद कर उसके उपर टेप लगा दिया जाय खास कर सोने के समय.

कोर्निया (Cornea) : कोर्निया  की तुलना मैं  हाथ की घडी के शीशे से करूंगा. यह पारदर्शी है थोड़ी उभरी सी. आप इसके पीछे के परदे को देख सकते हैं और इस परदे का रंग आँख का रंह होता है. अगर कोर्निया की पारदर्शिता बिगड़ी या इसमें कोई खरोंच  आ जाय तो आपकी नज़र धुंधली या ख़त्म हो जायगी. किसी की आँख में सफ़ेद हिस्से के बीच जो काला हिस्सा होता है वह कोर्निया है - मगर हकीकत में यह रंगहीन  पारदर्शी है.
जब हम नेत्रदान की बात करते हैं तो दरअसल इसका मतलब होता कई कोर्निया का दान जो किसी और की आँख में प्रत्यारोपित कर दी जाती है .

स्क्लेरा(Sclera ) : आँख का सफ़ेद हिस्सा.   

कन्जन्क्ताइवा (Conjunctiva ) : यह स्क्लेरा के उपर एक पारदर्शी झिल्ली होती है जो पलकों के अंदरी हिस्से को भी ढके रहती है. इसका संक्रमण (infection) आँख की सबसे आम बीमारी है जिसे Conjunctivitis  कहते हैं. 


आइरिस (Iris) और प्युपिल  (pupil): "झील सी नीली" आँखों का नीलापन आइरिस की ही वजह से होता है. कोर्निया के पीछे एक पर्दा सा होता है जिसके बीच में एक गोलाकार छेद होता है. यह पर्दा है आइरिस और इसमें का छेद "प्युपिल" कहा जाता है. प्युपिल का आकार बड़ा और छोटा होता है. अगर ज्यादा रोशनी होती है तो यह सिकुड़ कर छोटी हो जाती है और अगर रोशनी कम है तो यह फैल कर बड़ी हो जाती है. 
कोई व्यक्ति जीवित है या नहीं इसका पता करने केलिए एक महत्वपूर्ण जांच है की आँख में तेज रोशनी डाली जाय और देखा जाय की प्युपिल सिकुड़ रही है या नहीं. 
आइरिस का रंग अलग अलग होता है जो हमारी आँखों को रंग देता है जैसे कला, भूरा , नीला, हरा आदि. इस परदे की सतह को अगर ध्यान   से देखें तो यह बेहद खुरदरी सी होती है और हर व्यक्ति में इस खुरदुरेपन का पैटर्न अलग अलग होता है जैसे की उँगलियों के निशाँ. इसीलिए कई जगह अब आइरिस के पैटर्न को व्यक्ति के पहचान के रूप में प्रयोग करते हैं.

लेंस (lens): आँख के अन्दर आइरिस के परदे के पीछे बाकायदा एक लेंस लगा होता है. और इस लेंस का पावर होता है +१०. अर्थात अगर किसी वजह से यह लेंस आँख से निकल दिया जय तो फिर आपको लगाना पड़ेगा मोटा सा +१० पावर का चश्मा. जब लेंस की पारदर्शिता ख़त्म हो जाती है तो इसे मोतियाबिंद (CATARACT ) कहते हैं. और इसका इलाज होता है ओपरेशन कर के खराब   लेंस को निकाल देना और फिर या तो मोटा चश्मा लगाना होता है(ऐसा अब कम ही होता है) या ओपरेशन के ही समय एक कृत्रिम लेंस आँख के अन्दर डाल देते है.       

रेटिना (Retina): अगर आँख  की तुलना एक कैमरे से करें तो रेटिना इस कमरे का "फिल्म रील" है. हमरी आँख एक खोखली गेंद की तरह है. इस गेंद का एक छोटा सा गोलाकार हिस्सा पारदर्शी है(कोर्निया) जो बाहर की रोशनी को गेंद के अन्दर आने देता है. यह किरण प्यूपिल के पीछे के लेंस से गुजर कर अंततः गेंद के पीछे के दीवाल की आतंरिक सतह पर पड़ती है. यह आतंरिक सतह ही रेटिना है. रेटिना में एक खास तरह की कोशिका पाई जाती है. इसके ऊपर प्रकाश की किरण पड़ने से यह विद्युतीय तरंग पैदा करती  है जो आँख की नाड़ी(ऑप्टिक nerve ) से गुजर कर दिमाग के उस हिस्से में  पहुँचती है जहाँ हम इसे एक दृश्य के रूप  में मह्शूश    करते है.
अगर अनियंत्रित डायबिटीज या रक्तचाप की लम्बी शिकायत हो तो रेटिना में खराबी उत्पन्न होने लगती है और अगर जल्दी उपाय न किया जाय तो व्यक्ति दृष्टि हीन हो जा सकता है.


आज के लिए बस इतना ही. फिर मिलेंगे. शुभ रात्रि !! शुभ प्रभात. 




















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