अगर कोई एक होर्मोन जिसके विषय में अधिकतर लोगों ने सुन रखा है तो वह शायद इंसुलिन ही है।
हमारे स्वास्थय के लिये यह एक अत्यंत महत्वपूर्ण अंत:स्राव (hormone) है।
चलिये आपको एक कहानी सुनाता हूँ।
सन् १८५७ की क्रांति को विलायती हुकूमत ने बेदर्दी से कुचल दी थी। हताश हिंदुस्तान अपने अतीत एवं भविष्य का चिंतन कर रहा था। इसी समय १८६९ में जर्मनी की राजधानी बर्लिन में पॉल लैंगरहैंस नामक एक युवा वैज्ञानिक २२ वर्ष की उम्र में सूक्ष्मदर्शी से अग्न्याशय (Pancreas) का निरीक्षण करते हुए कुछ ऐसी कोशिका समूह की खोज की जो अग्न्याशय मेंद्वीपों की तरह बिखङी थी। इसी साल पोरबंदर में गाँधी जी का जन्म हुआ था। अग्न्याशय (जो की मूलत: पाचक रस का स्रवन करता है) में पाये जाने वाले इन कोशिका समूह द्वीपों का क्या कार्य है किसी को मालूम ना था। समय गुजरता गया। बीस साल बाद १८८९, साल जब जवाहर लाल नेहरु का जन्म हुआ था, पोलैंड-जर्मन मूल के आस्कर मिंकोवस्की ने एक प्रयोग किया-उसने एक कुत्ते का आपरेशन कर उसका अग्न्याशय निकाल दिया था। उसने यह पाया कि इस कुत्ते के पेशाब पर खूब मक्खियाँ लग रही थी- और पेशाब के निरीक्षण पर उसमें शुगर पाया गया। कुछ दिनों में उस कुत्ते की मौत हो गई। मधुमेह की बीमारी की जानकारी हमें चरक् के समय से थी। मगर किसी को पता ना था कि यह बिमारी होती क्यों है।
आप जैसे जैसे विषुवत रेखा से ध्रुव की तरफ़ बढ़ते हैं, बच्चों में पाये जाने वाली मधुमेह की बिमारी (type 1 Diabetes- insulin dependent diabetes) ज्यादा दीखने को मिलती है। ऐसा सदियोंसे होता रहा है और आज भी सच है। लंदन में काम करते हुये मैंने इसे खुद महसूस किया है। बीसवीं सदी के पूर्वार्ध का यूरोप और उत्तरी अमरीका के किसी अस्पताल के बच्चों के वार्ड के एक हिस्से में इस बिमारी से ग्रस्त मरनासन्न बच्चों का भाग होता था, और बेबस माँ- बाप उनके मौत का इंतज़ार कर रहे होते थे। क्या दर्दनाक स्थिति होती होगी!
सन् १९२० का कनाडा, सुहाने गर्मी का मौसम बीत चुका है। पतझड़ का आगमन हो चुका है। सुदूर कनाडा मे काम करने वाले महाशय बेंटिंग अधुनिक विकसित होते शहर टोरोंटो को आते है। उनके इस अगमन का एक खास प्नयोजन है। टोरोंटो विश्वविद्यालय के प्राध्यापक महाशय मैक्ल्योइड शारीरिक विज्ञान के क्षेत्र में एक ख्याति प्राप्त व्यक्ति थे। बेंटिँग की मुलाकात महा• मैक्लोइड से होती है। महा• बेंटिँग का प्रस्ताव है कि शायद उन्हें मधुमेह की बिमारी का ईलाज़ मिल सकता है, मगर उन्हें और प्रयोग के लिये विश्वविद्यालय के प्रयोगशाला की ज़रूरत होगी। मह• मैकलियोइड इस प्रस्ताव से खासे प्रभावित तो ना थे, मगर कनाडा की भीषण सर्दी से राहत के लिये और अपने संबंधियों के बीच बड़े दिन की छुट्टी मनाने उनका स्कोटलैंड जाने कीयोजना थी। उन्होंने बेंटिँग को अपनी प्रयोगशाला में काम करने की अनुमति दे दी। उनहोंने अपने एक युवा विद्यार्थी बेस्ट को बेंटिँग की मदद करने का निर्देश भी दिया। बेंटिग और बेस्ट ने जो प्रयोग उस ठंडी प्रयोगशाला में किये वो चिकित्सा जगत में नये युग की शुरुआत साबित हुई। उन दोनों ने १२ कुत्तों पर अपने प्रयोग किये। उन्होंने कुत्तोंके अग्न्याशय को निकाल दिया। इससे कुत्तों मे मधुमेह की बिमारी हो गई- और तय था कि वो कुछ दिनों मे मर जायेंगे। बेंटिंग ने एक तकनीकि विकसित की थी - पॉल लैंगरहैंस द्वारा १९६९ में पहचाने पक्वाशय के द्वीपीय कोशिकाओं का शुद्ध सार निकालने की। इस सार तत्व को जब पक्वाशय रहित मधुमेह पीङित कुत्त्तों को इंजेक्ट किया गया तो उनके मधुमेह की बिमारी ठीक होने लगी। यह चमत्कारिक था। लैगरहैंस की द्वीपीय कोशिकाओं (islet cells of langerhans) के सारतत्व को इन्सुलिन कहा गया।
सन् १९२१ में इसे और परिमार्जित कर मधुमेह पीङित मृत्यु शैय्या पर चेतनाहीन बच्चों में इसका प्रथम प्रयोग एक ज़ादू सा था। बच्चे ने आँखें खोली और परिजनों में आशा और खुशियों की लहर दौङ गई।
बेंटिँग और मैक्लियोइड को नोबेल पुरस्कार से नवाज़ गया। महामना बेंटिंग ने अपनी सफलता का आधा श्रेय और पुरस्कार राशि बेस्ट को दिया। बेंटिंग और बेस्ट का नाम इन्सुलिन की खोज करने के लिये सदा के लिये अमर हो गया।
I'm so glad about it after read. Thanku
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