मुझे याद है कि नोंवीं- दशवीं तक की पढाई के बाद भी जब मैं यह सोचता था कि इश्वर के होने का क्या प्रमाण है तो एक बात जो बिलकुल चमत्कृत सी करती थी कि दिल जो लगातार धड़क रहा है बगैर मेरी इच्छा के; यह तो ईश्वरीय चमत्कार ही हो सकता है और क्या?
अब शायद न तो प्रमाण ढूँढने की कोशिश होती है न ही मैं चमत्कृत होता हूँ.
शरीर क्रिया विज्ञानं (physiology) की प्रायोगिक कक्षा में एक प्रयोग होता था. जीवित मेढक को बेहोश कर उसके दिल को निकाल कर उसे एक लवणीय घोल (saline solution ) में रखा जाता था, शरीर से अलग, और वह अब भी कुछ देर के लिए धड़क रहा होता था. अब इस घोल में एक रसायन adrenaline मिलाया गया और स्वतः दिल के धड़कन की गति तेज हो जाती थी. सभी कुछ कितना मशीनी लगने लगता था.
ह्रदय एक मांसल अंग है. यह मांसपेशियों से बना हुआ है. जबकि यकृत (लीवर), प्लीहा (स्प्लीन), वृक्क (किडनी) आदि अंग मांसपेशियों से बने नहीं हैं. मांसपेशी एक ख़ास तरह की उत्तक होती है जिसमे संकुचित होने और फिर शिथिल (relax) होने का गुण होता है. हाथ पैर की मांसपेशिया हमारे इच्छा के अधीन होती हैं, और तभी संकुचित या शिथिल होती हैं जब हम चाहते हैं, फलतः हम इच्छानुसार हाथ पैर को चला सकते हैं. मगर दिल की मांसपेशियों की कुछ खास बात है :
अब शायद न तो प्रमाण ढूँढने की कोशिश होती है न ही मैं चमत्कृत होता हूँ.
शरीर क्रिया विज्ञानं (physiology) की प्रायोगिक कक्षा में एक प्रयोग होता था. जीवित मेढक को बेहोश कर उसके दिल को निकाल कर उसे एक लवणीय घोल (saline solution ) में रखा जाता था, शरीर से अलग, और वह अब भी कुछ देर के लिए धड़क रहा होता था. अब इस घोल में एक रसायन adrenaline मिलाया गया और स्वतः दिल के धड़कन की गति तेज हो जाती थी. सभी कुछ कितना मशीनी लगने लगता था.
ह्रदय एक मांसल अंग है. यह मांसपेशियों से बना हुआ है. जबकि यकृत (लीवर), प्लीहा (स्प्लीन), वृक्क (किडनी) आदि अंग मांसपेशियों से बने नहीं हैं. मांसपेशी एक ख़ास तरह की उत्तक होती है जिसमे संकुचित होने और फिर शिथिल (relax) होने का गुण होता है. हाथ पैर की मांसपेशिया हमारे इच्छा के अधीन होती हैं, और तभी संकुचित या शिथिल होती हैं जब हम चाहते हैं, फलतः हम इच्छानुसार हाथ पैर को चला सकते हैं. मगर दिल की मांसपेशियों की कुछ खास बात है :
- यह हमारी इच्छाओं के नियंत्रण से मुक्त है- स्वानुशासी (autonomous ) है
- परन्तु यह दिमाग के कुछ ऐसे हिस्से के कंट्रोल में है जिस पर हमारी इच्छाओं का नियंत्रण नहीं है - इसे Autonomic nervous सिस्टम कहते है.
- इन मांसपेशियों में दबी एक खास तरह की कोशिकाओं का समूह होता है जिसमे स्वत रुक रुक कर विदुतीय आवेग बनते और मिटते रहते हैं. ये हमारे दिल के "पेस मेकर" हैं
- दिल जो सारे शरीर को रक्त पहुँचाने का पम्प है , मगर इसके खुद की कोशिकाओं के पोषण के लिए धमनियों(arteries ) का एक जाल होता है जिसे "coronary arteries " कहते हैं.
दिल की plumbing : कोरोनरी नलिकाए
पिछले पोस्ट से हम जान चुके हैं कि सारे शरीर का रक्त वेना कावा (vena cava ) के द्वारा अंतत दिल के दाहिने आलिन्द में पहुँचता है और बायां निलय जो दिल का सबसे मजबूत पम्पिंग चैंबर है, एओर्टा (aorta ) के द्वारा सारे शरीर में रक्त का सञ्चालन करता है.
मगर दिल के उत्तक/कोशिकाओं को समुचित पोषण और oxygen मिलता रहे इसके लिए एक अलग से व्यवस्था है जिसे "कोरोनरी" सिस्टम कहते हैं
बाएं निलय से जब शुद्ध रक्त पूरे शरीर के लिए पम्प होता है तो दिल से निकल कर सबसे पहले aorta में आता है जो कि शरीर की सबसे बड़ी धमनी है. इसी aorta की सबसे पहली शाखा है कोरोनरी आर्टरी जो इस शुद्ध रक्त को वापस दिल में लाती है मगर इस बार दिल के कमरों (chambers ) में नहीं बल्कि दिल के दीवारों में- दिल की सतत कार्यशील मांसपेशियों के पोषण के लिए. एओर्टा की दूसरी शाखा होती है carotid आर्टरी जो शुद्ध रक्त को मस्तिष्क में पहुँचाने का काम करती है-- तो यहाँ प्रकृति ने दिल को दीमाग के उपर रखा है.
कोरोनरी शब्द लैटिन के "cor" से बना है जिसका मतलब है दिल. आपने अस्पतालों में अक्सर CCU या ICCU लिखा देखा होगा जिसका मतलब है Coronary केयर unit या intensive कोरोनरी केयर unit .
कोरोनरी धमनी की दो शाखाये होती हैं लेफ्ट और राइट जो दिल के दाहिने और बाएं हिस्से को रक्त का परिचालन करती हैं. अगर इस धमनी में कभी कोई अवरोध आ जाय और दिल की मांसपेशियों को रक्त आपूर्ति बाधित हो जय तो उसे हार्ट attack कहते है. अगर यह अवरोध आंशिक है तो दिल को आपूर्ति की कमी तभी महसूस होती है जब दिल ज्यादा काम कर रहा हो - और इसे angina (एंजाइना) कहते हैं
दिल की wiring :
पम्प के चलते रहने के लिए सतत विद्युत् सप्लाई भी होनी चाहिए. दिल के अन्दर अपना जेनरेटर होता है इसे SA node कहते हैं. यह बाएं आलिन्द के अन्दर दबी छिपी एक छोटी सी बैटरी है जो रुक रुक कर विद्युतीय आवेग पैदा करती है, यह आवेग शेष सारे दिल में एक सूक्ष्म wiring के द्वारा फैल जाती है. SA node किस दर से विद्युतीय आवेग पैदा कर रहा है वह हमारे दिल के धड़कन की दर को निर्धारित करता है.
SA नोड के ऊपर दिमाग का भी कंट्रोल होता है जो इसके दर को तेज़ या कम कर सकती है. अगर SA नोड या वायरिंग में कोई खराबी आ जाय तो दिल के धरकने की लय में खराबी आ जाती है जो कि कोई दिल की धरकन को सुन कर या नब्ज़ की जांच कर के पता कर सकता है.
दिल से सम्बंधित सबसे आम जांच है ई सी जी (ECG electro cardio gram) जो कि दिल के अन्दर विद्य्तीय आवेग के नियमित संचरण का ग्राफ है. अगर दिल के वायरिंग या प्लंबिंग में कोई अवरोध या खराबी है तो इस ग्राफ में वो देखा जा सकता है.
तो आज के लिए बस इतना ही. धन्यवाद.
चित्र गूगल से आभार.
SA नोड के ऊपर दिमाग का भी कंट्रोल होता है जो इसके दर को तेज़ या कम कर सकती है. अगर SA नोड या वायरिंग में कोई खराबी आ जाय तो दिल के धरकने की लय में खराबी आ जाती है जो कि कोई दिल की धरकन को सुन कर या नब्ज़ की जांच कर के पता कर सकता है.
दिल से सम्बंधित सबसे आम जांच है ई सी जी (ECG electro cardio gram) जो कि दिल के अन्दर विद्य्तीय आवेग के नियमित संचरण का ग्राफ है. अगर दिल के वायरिंग या प्लंबिंग में कोई अवरोध या खराबी है तो इस ग्राफ में वो देखा जा सकता है.
तो आज के लिए बस इतना ही. धन्यवाद.
चित्र गूगल से आभार.
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