शनिवार, 19 दिसंबर 2015

इन्सुलिन: अग्न्याशय के द्वीप कोशों का अंत:स्राव

अगर कोई एक होर्मोन जिसके विषय में अधिकतर लोगों ने सुन रखा है तो वह शायद इंसुलिन ही है। 
हमारे स्वास्थय के लिये यह एक अत्यंत महत्वपूर्ण अंत:स्राव (hormone) है। 
चलिये आपको एक कहानी सुनाता हूँ।
 सन् १८५७ की क्रांति को विलायती हुकूमत ने बेदर्दी से कुचल दी थी। हताश हिंदुस्तान अपने अतीत एवं भविष्य का चिंतन कर रहा था। इसी समय १८६९ में जर्मनी की राजधानी बर्लिन में पॉल लैंगरहैंस नामक एक युवा वैज्ञानिक २२ वर्ष की उम्र में सूक्ष्मदर्शी से अग्न्याशय (Pancreas) का निरीक्षण करते हुए कुछ ऐसी कोशिका समूह की खोज की जो अग्न्याशय मेंद्वीपों की तरह बिखङी थी। इसी साल पोरबंदर में गाँधी जी का जन्म हुआ था। अग्न्याशय (जो की मूलत: पाचक रस का स्रवन करता है) में पाये जाने वाले इन  कोशिका समूह द्वीपों का क्या कार्य है किसी को मालूम ना था। समय गुजरता गया। बीस साल बाद १८८९, साल जब जवाहर लाल नेहरु का जन्म हुआ था,  पोलैंड-जर्मन मूल के आस्कर मिंकोवस्की ने एक प्रयोग किया-उसने एक कुत्ते का आपरेशन कर उसका अग्न्याशय निकाल दिया था। उसने यह पाया कि इस कुत्ते के पेशाब पर खूब मक्खियाँ लग रही थी- और पेशाब के निरीक्षण पर उसमें शुगर पाया गया। कुछ दिनों में उस कुत्ते की मौत हो गई। मधुमेह की बीमारी की जानकारी हमें चरक् के समय से थी। मगर किसी को पता ना था कि यह बिमारी होती क्यों है। 
आप जैसे जैसे विषुवत रेखा से ध्रुव की तरफ़ बढ़ते हैं, बच्चों में पाये जाने वाली मधुमेह की बिमारी (type 1 Diabetes- insulin dependent diabetes) ज्यादा दीखने को मिलती है। ऐसा सदियोंसे होता रहा है और आज भी सच है। लंदन में काम करते हुये मैंने इसे खुद महसूस किया है। बीसवीं  सदी के पूर्वार्ध का यूरोप और उत्तरी अमरीका के किसी अस्पताल के बच्चों के वार्ड के एक हिस्से में  इस बिमारी से ग्रस्त मरनासन्न बच्चों का भाग होता था, और बेबस माँ- बाप उनके मौत का इंतज़ार कर रहे होते थे। क्या दर्दनाक स्थिति होती होगी!
सन् १९२० का कनाडा, सुहाने गर्मी का मौसम बीत चुका है। पतझड़ का आगमन हो चुका है। सुदूर कनाडा मे काम करने वाले महाशय बेंटिंग अधुनिक विकसित होते शहर टोरोंटो को आते है। उनके इस अगमन का एक खास प्नयोजन है। टोरोंटो विश्वविद्यालय के प्राध्यापक महाशय मैक्ल्योइड शारीरिक विज्ञान के क्षेत्र में एक ख्याति प्राप्त व्यक्ति थे। बेंटिँग की मुलाकात महा• मैक्लोइड से होती है। महा• बेंटिँग का प्रस्ताव है कि शायद उन्हें मधुमेह की बिमारी का ईलाज़ मिल सकता है, मगर उन्हें और प्रयोग के लिये विश्वविद्यालय के प्रयोगशाला की ज़रूरत होगी। मह• मैकलियोइड इस प्रस्ताव से खासे प्रभावित तो ना थे, मगर कनाडा की भीषण सर्दी से राहत के लिये और अपने संबंधियों के बीच बड़े दिन की छुट्टी मनाने उनका स्कोटलैंड जाने कीयोजना थी। उन्होंने बेंटिँग को अपनी प्रयोगशाला में काम करने की अनुमति दे दी। उनहोंने अपने एक युवा विद्यार्थी बेस्ट को बेंटिँग की मदद करने का निर्देश भी दिया। बेंटिग और बेस्ट ने जो प्रयोग उस ठंडी प्रयोगशाला में किये वो चिकित्सा जगत में नये युग की शुरुआत साबित हुई। उन दोनों ने १२ कुत्तों पर अपने प्रयोग किये। उन्होंने कुत्तोंके अग्न्याशय को निकाल दिया। इससे कुत्तों मे मधुमेह की बिमारी हो गई- और तय था कि वो कुछ दिनों मे मर जायेंगे। बेंटिंग ने एक तकनीकि विकसित की थी - पॉल लैंगरहैंस द्वारा १९६९ में पहचाने पक्वाशय के द्वीपीय कोशिकाओं का शुद्ध सार निकालने की। इस सार तत्व को जब पक्वाशय रहित मधुमेह पीङित कुत्त्तों को इंजेक्ट किया गया तो उनके मधुमेह की बिमारी ठीक होने लगी। यह चमत्कारिक था। लैगरहैंस की द्वीपीय कोशिकाओं (islet cells of langerhans) के सारतत्व को इन्सुलिन कहा गया। 
सन् १९२१ में इसे और परिमार्जित कर मधुमेह पीङित मृत्यु शैय्या पर चेतनाहीन बच्चों में इसका प्रथम प्रयोग एक ज़ादू सा था। बच्चे ने आँखें खोली और परिजनों में आशा और खुशियों की लहर दौङ गई।
बेंटिँग और मैक्लियोइड को नोबेल पुरस्कार से नवाज़ गया। महामना बेंटिंग ने अपनी सफलता का आधा श्रेय और पुरस्कार राशि बेस्ट को दिया। बेंटिंग और बेस्ट का नाम इन्सुलिन की खोज करने के लिये सदा के लिये अमर हो गया।

श्री चार्ल्स बेस्ट और श्रीमान् फ्रेडरिक बेंटिँग।

अगले पोस्ट में इन्सुलिन की कहानी आगे चलेगी-------

रविवार, 22 नवंबर 2015

पीयूष ग्रंथि - सुल्तान -ए - अन्तःस्रावी दुनिया

सुल्तान -ए - अन्तःस्रावी दुनिया 

 अन्तःस्रावी ग्रन्थियों का सिरमौर पीयूष ग्रंथि ही है. इसे अंग्रेजी में pituitary (पिट्यूटरी ) ग्लैंड कहते हैं. 


यह मष्तिष्क के बिलकुल भीतरी भाग में, इसके अंतःस्थल में अवस्थित होता है. अगर आप अपनी जिह्वा की नोक से, तालु का सख्त भाग,  जो आगे की तरफ होता है, और पिछला मांसल भाग जहाँ मिलते हैं वहां स्पर्श करें, और कल्पना करें  कि  आप ऊपर के तरफ मस्तिष्क के अंदर जा रहें हैं तो शायद आप पीयूष ग्रंथि को पहुँच रहे हैं। योग विज्ञान में खेचरी मुद्रा का ज़िक्र आता है. योगी तालु के इस बिंदु पर जिह्वा से स्पर्श कर ध्यान लगाते हैं, और ऐसा वर्णन मिलता है कि उन्हें अमृत वर्षा की अनिभूति होती है।  मेरा ऐसा कोई अनुभव नहीं है।  यद्यपि यह बात विज्ञान के क्षेत्र से बाहर जाती हुई सी है मगर एक मज़ेदार तथ्य है जो इस तरफ इशारा करता हो कि  क्या पुराने समय के योगियों को पीयूष ग्रंथि की स्थिति और महत्व का एहसास था - शायद!  
 

यह एक वैज्ञानिक तथ्य है कि माँ  के गर्भ में जब भ्रूण विकसित हो रहा होता है तो विकास के क्रम में सख्त और मांसल तालु जहाँ मिल रहे होते हैं, वहां एक रंध्र होती है जिससे गुज़र कर एक ख़ास तरह की कोशिका ऊपर विकसित होते मस्तिष्क की तरफ चली जाती है और पीयूष ग्रंथि का निर्माण करती है. 

खैर हम आगे बढ़ते हैं. पीयूष ग्रंथि से कई तरह के हार्मोन का स्राव होता है जो हमारे शरीर को कई तरह से प्रभावित और नियंत्रित करता है.  प्रमुख हार्मोन ये हैं- 
१. ग्रोथ हॉर्मोन ( Growth Hormone): यह शरीर के विकास को नियंत्रित करता है- इसके आभाव में बच्चों की लंबाई नहीं बढ़ती, और शरीर  विकसित नहीं हो पाता. हालाँकि  यह ख्याल रखने की बात है कि ग्रोथ हॉर्मोन की कमी बौनेपन की शिकायत का एक बेहद rare असंभावित कारण है.  
२. TSH: थाइरोइड स्टिम्युलेटिंग हॉर्मोन : यह थाइरोइड ग्रंथि को नियंत्रित करता है. आम तौर पर अगर कोई व्यक्ति थाइरोइड हॉर्मोन की कमी का शिकार हो तो उसके रक्त जाँच  में TSH का स्तर बढ़ा होता है. 
३. ACTH: यह किडनी के ऊपर स्थित एक ग्रंथि  एड्रिनल ग्लैंड को नियंत्रित करता है. हम इसके बारे में फिर कभी बात करेंगे 
४. LH/ FSH: ये दो हॉर्मोन हैं जो पीयूष ग्रंथि से स्रावित हो दूरस्थ ovary और testes को नियंत्रित करते हैं. शरीर के यौन विकास  और यौन स्वास्थय के लिए इनका बेहद महत्वपूर्ण  योगदान होता है. 
५. Prolactin: प्रोलैक्टिन : यह एक ऐसा हॉर्मोन है जो माँ  और पिता में बच्चों के लिए जो स्वभाविक  स्नेह और प्यार होता है, का कारण है. प्रसूति के पश्चात  माँ के स्तन में दूध आने के लिए इसका महत्वपूर्ण योगदान होता है. . 
६. ऑक्सीटोसिन (oxytocin ) : सामाजिक एवं यौन सम्बन्ध व् सुख के लिए इसकी भूमिका है. माँ के दूध होने के लिए भी ये ज़रूरी है. 
७. वैसोप्रेसिन - vassopresin : यह हमारे शरीर में पानी की मात्रआ  को और रक्त चाप को नियंत्रित करता है. 

इस तरह से हम देख सकते हैं कि अंतःस्रावी ग्रंथियों का बादशाह पीयूष ग्रंथि हमारे शरीर को कई तरह से प्रभावित और नियंत्रित कर सकता है. इसी तरह इसके क्रिया कलाप में कोई खराबी आने से हमारा शरीर कई तरह से प्रभावित ओ सकता है. मगर शरीर की एक खासियत है की यह सुरक्षित कपाल के अंदर स्थित होता है और इससे सम्बंधित रोग की सम्भावना काफी कम होती है. 
कुछ बच्चे जन्मजात रूप से ही पीयूष ग्रंथि की खराबी के साथ साथ पैदा होते हैं और उनकी पहचान कर लेना बहुत ज़रूरी होता है, अन्यथा यह जान लेवा हो सकता है.  कई बार मस्तिष्क में होने वाले ट्यूमर ( ब्रेन tumor ) इसको प्रभावित कर सकते हैं. 

सच पूछे तो पीयूष ग्रंथि का कार्य बेहद महत्वपूर्ण और जटिल है जो साधारण  डॉक्टर्स के लिए भी एक पेचीदा सा मामला होता  है. मगर ईश्वर की लीला है की इससे सम्बंधित बीमारिया विरले ही होते हैं. 

अब आप पूछेंगे की अगर पीयूष बादशाह है तो फिर बेगम कौन हुई. - आपको बताना है की बादशाह पर परदे के पीछे से कौन नियंत्रण रक्खे है? 

अगर आपको इससे सम्बंधित कोई सवाल हो तो बताएं मैं अपनी क्षमता अनुसार उत्तर देने की कोशिस करूँगा. 
 
 






सोमवार, 5 जनवरी 2015

पारा थाइरॉयड ग्रन्थि

पारा थाइरॉयड ग्रन्थि 
एक लम्बे अवकाश के पश्चात पुनः अपने शरीर से सम्बंधित - अन्तःस्रावी ग्रंथियों की बात को आगे बढ़ाना चाहता हूँ. 

अब तक हमने पीयूष और थाइरॉयड की बातें की है.  आम तौर से लोग इनके बारे में परिचित भी होते हैं. मगर आज मैं बात करने जा रहा हूँ पारा थाइरॉयड की जिससे आपमें से कई परिचित न हों. 
 पारा थाइरॉयड हॉर्मोन की समस्या उतनी आम नहीं है.  फिर ही यह अपने शरीर का महत्वपूर्ण  इसलिए हमें इसके बारे में   चाहिए. 






आम तौर से अलग अलग ४ छोटे छोटे पारा थाइरॉयड ग्रंिथयां हमारे शरीर में पाई जाती हैं. ये थाइरोइड ग्रंथि के ही  पिछले भाग़ में चिपकी होती है. इसका आकर आधे सेंटीमीटर  डिस्क के जैसा होता है. 
कई बार जब ऑपरेशन कर थाइरॉयड ग्रंथि को शल्य  चिकित्सक निकाल रहे होते हैं तो यह खास सावधानी रखनी होती है कि पारा थाइरॉयड को बचा लिया जाय. आप जान कर हैरान होंगे की हम थाइरोइड के बगैर तो जीवित रह सकते हैं मगर पारा थाइरोइड के बगैर नही. 
इस ग्रंथि से निकलने वाले हॉर्मोन को पाराथोरमोन  कहते हैं. इसका सबसे महत्व पूर्ण कार्य है कि  यह हमारे रक्त में कैल्शियम की सही  मात्रा  को बनाये रखता है. अगर पारा थोरमोन न हो तो हमरे रक्त में कैल्शियम की भरी कमी हो जायगी और अंततः विभिन्न अंगों के न काम कर सकने की वजह से मृत्यु. 


इसीतरह अगर इसकी अधिकता हो जाय तो रक्त में कैल्शियम की मात्र बहुत  बढ़ जाती है. इस ग्रंथि में होने वाले ट्यूमर की वजह से ऐसा हो सकता है. यह औरतों में ज्यादा होने की सम्भावना होती है. इस स्थिति को hyperparathyroidism  ( हाइपर पारा थाइरॉइडिज्म ) कहते हैं. इसके मुख्या लक्षण हैं- थकन लग्न, हड्डियों में दर्द और आसानी से फ्रैक्चर हो जाना तथा रक्त जांच में कैल्शियम की अधिकता।  कई बार अगर किसी को कोई दूसरा भी कैंसर है तो ट्यूमर  एक ऐसे रसायन (PTHrP- parathyroid related peptide)  का स्राव करता है  जो इस हॉर्मोन की तरह कार्य करता  है और परिणामतः रक्त में कैल्शियम का स्तर  बढ़ जाता है.  तो कई बार अगर  रक्त में कैल्शियम का स्तर तो यह छिपे  कैंसर की निशानी हो सकती है. 
हमारे शरीर में ऐसा प्रबंध है की अगर किसी वजह से रक्त में कैल्शियम की कमी हो तो अपने आप पाराथोरमोन का स्राव बढ़ जाता है. पाराथोरमोन  कैल्शियम के स्तर को बढ़ने के लिए हमारी हड्डियों में जमा कैल्शियम को निकलने लगता है , मगर इससे हड्डिया खोखली और  कमजोर हो जाती हैं.  यह हालात अक्सर तब उत्पन्न होती है जब किसी को वृक्क ( किडनी) failure  हो जाय. 

वृक्क की बीमारी में कैल्शियम की कमी होने लगती है और पाराथोरमोन  का स्राव बढ़ जाता है. इस स्तिति को  लिए बाहर से अतिरिक्त कैल्शियम देने की जरूरत होती है. नहीं तो अस्थियां बहुत  कमजोर हो जाती हैं. 





  




सोमवार, 14 जुलाई 2014

अन्तः स्रावी ग्रन्थियां -२ थाइरॉयड

अन्तः स्रावी ग्रन्थियां -२ - थाइरॉयड







पिछले पोस्ट में , जिसे लिखे एक अरसा हो गया है,  हमने अन्तःस्रावी ग्रंथियों और हॉर्मोन के बारे में कुछ मौलिक बातें की थी।  उस वार्ता के मुख्य बिंदु थे कि हॉर्मोन हमारे शरीर के  कुछ ख़ास ग्रंथियों से उत्पन्न ऐसे रसायन हैं  जो रक्त प्रवाह में मिल कर शरीर के विभिन्न हिस्सों पर अपना प्रभाव डालते हैं.  हमने यह भी देखा था की पियूष ग्रंथि (पिट्यूटरी ग्लैंड ) जो मस्तिष्क के अंदर स्थित है वह इस अन्तःस्रावी तंत्र (एंडोक्राइन सिस्टम) का बादशाह  है और मस्तिष्क का ही एक दूसरा हिस्सा जिसे हाइपोथैलेमस कहते हैं वह बेगम की भूमिका निभाती है क्योंकि उसका नियंत्रण पीयूष के ऊपर होता है।
आज हम थाइरोइड ग्रंथि- (Thyroid Gland) के बारे में बातें करेंगे. थाइरॉयड ग्रंथि हमारी  स्वांस नलिका (Trachea- ट्रेकिआ) के  इर्द गिर्द स्थित है और इसका आकार अंग्रेजी के H अक्षर की तरह का होता है। अगर आप अपनी छाती के बीच के हड्डी जिसे एस्टर्नम (sternum) कहते हैं के ठीक ऊपर अपनी ऊँगली लगाएं तो आप स्वांश नाली(trachea) को मह्शूश कर सकते है , इस पर ज्यादा दबाव देने से खांसी आ सकती है।  इसे के दोनों पहलू में थाइरॉयड का निवास है।आम तौर से जब यह अपने सामान्य आकार में होता है तो आप इसे अनुभव नहीं कर सकते हैं, मगर यदि यह किसी भी वजह से बढ़  जाय तो आप इसे देख और महसूस कर सकते है।   बढ़े  हुए थाइरॉयड को goitre - ग्वॉइटर  या आम तौर से घेघा की बीमारी कहते हैं।
थाइरॉयड ग्रंथि एक हॉर्मोन बनाती है जिसे थाइरॉक्सिन (Thyroxin) कहते हैं। यह हमारे शरीर के लिए बेहद जरूरी है.  ख़ास कर नवजात शिशु और छोटे  बच्चे का मानसिक व् शारीरिक  विकास इसके बिना समुचित रूप से नहीं हो सकता है।  कभी कभी नवजात शिशु के शरीर में जन्मजात रूप से थाइरॉयड ग्रंथि  अविकसित या अनुपस्थित हो सकता है. ऐसे में जब तक बच्चा माँ  के गर्भ में होता है तो गर्भ नाल के द्वारा माँ  के शरीर में उत्पन्न थाइरॉक्सिन गर्भस्थ  बच्चे को मिलता रहता है और वह सामान्य रूप से विकसित हो सकता है।  मगर जन्म के उपरांत ऐसे बच्चे की  थाइरॉक्सिन  की आपूर्ति बाधित हो जाती है और बच्चे का मानसिक व् शारीरक विकास थम जाता है. अगर हम ऐसे बच्चो की पहचान जल्द से जल्द शुरू के २-३ सप्ताह के अंदर कर सकें और इलाज़ के तौर पर थाइरॉक्सिन  की दवा शुरू कर दें तो  बड़ी आसानी से एक मासूम बच्चे को  मानसिक व् शारीरिक रूप से अपाहिज होने से बचा सकते है। विकसित देशों में हर नवजात बच्चे की एक रक्त जांच ५ दिन की उम्र पर होता है इसका पता करने केलिए और इस समस्या से बचने के लिए. भारत व् अन्य विकासशील देशों में  यह कारप्रक्रिया अभी  सार्वजानिक रूप से  शुरू नहीं हुई है। मगर प्राइवेट में यह जांच आसानी से हर छोटे बड़े शहर में उपलब्ध है.
आज के लिए बस शेष अगले पोस्ट मे।  धन्यवाद।

रविवार, 5 जनवरी 2014

अंतःस्रावी ग्रंथियां और हॉर्मोन -1

अंतःस्रावी ग्रंथियां और हॉर्मोन
अंतःस्रावी ग्रंथियाँ हमारे शरीर में स्थित छोटी मगर बहुत ही महत्वपूर्ण संरचनआये  है। आपमें से अधिकतर  लोगों ने  Endocrine glands या endocrinologists  के बारे में तो अवश्य हे सुना होगा। यह ही है अंतःस्रावी  ग्रंथि और  हॉर्मोन से सम्बंधित बिमारियों के विशेषज्ञ।
ये ग्रंथियां खास तरह के रसायन का स्रवन करती हैं जिन्हे हार्मोन कहते हैं।  हार्मोन की खास बात ये है कि ये रक्त में मिल कर शरीर के दूरस्थ भाग में भी पहुँच कर अपना विशिष्ट प्रभाव दिखाती हैं।  
शरीर में स्थित महत्वपूर्ण अंतस्रावी ग्रंथियों की सूची
१. पीयूष ग्रंथि - Pituitary glands
२. थाइरॉयड - Thyroid gland
३. पारा थाइरॉयड - parathyroid gland
४. पक्कवाशय - Pancreas
५ . एड्रीनल ग्रंथि  - adrenal glands
६ . अंडाशय या  अंडकोश ovary or testes






अंतःस्रावी ग्रंथियों के अलावा भी हमारे शरीर में कई अन्य ग्रंथिया होती हैं मगर उनके रसायन का असर स्थानिक अर्थात वहीँ का वहीँ होता है- जैसे उदहारण के तौर पर लार ग्रंथि(salivary gland) से निकलने वाले लार का असर सिर्क मुख में ही  है अतः इसे अंतःस्रावी ग्रंथि की श्रेणी में नहीं रखा जाता है- इसे बहिःस्रावी ग्रंथि कहेंगे  और लार को हॉर्मोन नहीं कहते है।

निस्संदेह पीयूष ग्रंथि ही  अंतःस्रावी तंत्र का सिरमौर या बादशाह है।  ऐसा इस लिए कि इसका प्रभाव और नियंत्रण -अन्य कई ग्रंथियों के ऊपर है।  और अगर ये बादशाह है तो फिर बेगम कौन हुई?- मेरे ख्याल से यह गौरव तो हाइपोथैलेमस (hypothalamus) को मिलना चाहिए। आपने ऊपर की तस्वीर में देखा होगा कि पीयूष के ठीक पास ऊपर की तरफ दिमाग का एक छोटा सा हिस्सा है जिसे हाइपोथैलेमस कहते हैं।  हालाँकि इसे अंतस्रावी ग्रंथि की श्रेणी में नहीं रखा जाता है मगर इससे निकले वाले रसायन का नियंत्रण बादशाह पीयूष के ऊपर होता है- तो फिर यह हुई न बेगम!!
अगर मैं सोचूं कि तमाम हॉर्मोन में कौन सा हॉर्मोन है जिससे आम जन सबसे ज्यादा परिचित हों तो वह सम्मान शायद इन्सुलिन को मिलना चाहिए और फिर  दूसरे  पायदान पर होंगे thyroid . आम तौर से लोग इन्सुलिन को हार्मोन के रूप में नहीं सोचते हैं मगर सच तो येही है।  पक्क्वाशय तमाम अंतःस्रावी ग्रंथियों में सबसे बड़ी है जो अमाशय (stomach) के पीछे स्थित है।  इसका अधिकतर हिस्सा बहिःस्रावी (exocrine gland) के रूप में काम करता है - इससे पाचक रसायन का स्राव होता है जो आंत में में भोजन से मिल कर उसे पचाती हैं।  इसी पक्व्शय के अंदर कुछ ख़ास तरह की कोशिकाओं के छोटे  द्वीप होते  हैं जिन्हें islets of Langerhans कहते हैं  और इनसे ही इन्सुलिन का स्राव होता है जो आंत में न जा कर रक्त  प्रवाह में मिलकर शरीर के हर हिस्से में अपना प्रभाव दिखता है।  और अगर इस प्रक्रिया में खराबी आ जाय तो मधुमेह या डायबेटीस  की बीमारी हो जाती है।



इस स्वनियंत्रित व्यवस्था पर क्या हमारा कोई नियंत्रण, आंशिक या सम्पूर्ण, सम्भव है? स्वामी रामदेव और कई अन्य योगियों ने ऐसा दावा किया है - मगर यह कितना सच है? मिलते अगले पोस्ट में।
नव वर्ष की शुभकामनायें !!






शुक्रवार, 6 अप्रैल 2012

दिल की बात 2 : दिल की धड़कन

मुझे याद है कि नोंवीं- दशवीं तक की पढाई के बाद भी जब मैं यह सोचता था कि इश्वर के होने का क्या प्रमाण है तो एक बात जो बिलकुल चमत्कृत सी करती थी कि दिल जो लगातार धड़क रहा है बगैर  मेरी इच्छा के; यह तो ईश्वरीय चमत्कार ही हो सकता है और क्या?

अब शायद न तो प्रमाण ढूँढने की कोशिश होती है न ही मैं चमत्कृत होता हूँ.


शरीर क्रिया विज्ञानं (physiology) की प्रायोगिक कक्षा में एक प्रयोग होता था. जीवित मेढक को बेहोश कर उसके दिल को निकाल कर उसे एक लवणीय घोल (saline  solution ) में रखा जाता था, शरीर से अलग, और वह अब भी कुछ   देर  के लिए धड़क रहा होता था. अब इस घोल में एक रसायन adrenaline मिलाया गया  और स्वतः दिल के धड़कन   की गति तेज हो जाती थी. सभी कुछ कितना मशीनी लगने लगता  था.


ह्रदय एक मांसल अंग है. यह मांसपेशियों से बना हुआ है. जबकि यकृत (लीवर), प्लीहा (स्प्लीन), वृक्क (किडनी) आदि अंग मांसपेशियों से बने नहीं हैं. मांसपेशी एक ख़ास तरह की उत्तक होती है जिसमे संकुचित होने और फिर शिथिल (relax) होने का गुण होता है. हाथ पैर की मांसपेशिया हमारे  इच्छा के अधीन होती हैं, और तभी संकुचित या शिथिल होती हैं जब हम चाहते  हैं, फलतः हम इच्छानुसार हाथ पैर को चला सकते हैं. मगर दिल की मांसपेशियों की कुछ खास  बात है  :

  • यह हमारी इच्छाओं के नियंत्रण से मुक्त है- स्वानुशासी (autonomous ) है
  • परन्तु यह दिमाग के कुछ ऐसे हिस्से  के कंट्रोल में है जिस पर हमारी इच्छाओं का नियंत्रण नहीं है - इसे Autonomic  nervous  सिस्टम कहते है.  
  • इन मांसपेशियों में दबी एक खास तरह की कोशिकाओं का समूह होता है जिसमे स्वत रुक  रुक कर विदुतीय आवेग बनते और मिटते रहते हैं. ये हमारे दिल के "पेस मेकर" हैं 
  • दिल जो सारे शरीर को रक्त पहुँचाने का पम्प   है , मगर इसके खुद की कोशिकाओं के पोषण के लिए धमनियों(arteries ) का एक जाल होता है जिसे "coronary  arteries  " कहते हैं.
दिल की plumbing : कोरोनरी नलिकाए 

पिछले पोस्ट से हम जान चुके हैं कि सारे शरीर का रक्त वेना कावा (vena  cava ) के द्वारा अंतत दिल के दाहिने आलिन्द में पहुँचता है और बायां निलय जो दिल का सबसे मजबूत पम्पिंग चैंबर है, एओर्टा (aorta ) के द्वारा सारे शरीर  में रक्त का सञ्चालन करता है.
मगर  दिल के उत्तक/कोशिकाओं को समुचित पोषण और oxygen   मिलता रहे इसके लिए एक अलग से व्यवस्था है  जिसे "कोरोनरी" सिस्टम कहते हैं 
बाएं निलय से जब शुद्ध रक्त पूरे शरीर के लिए पम्प होता है तो दिल से निकल कर सबसे पहले aorta  में आता है जो कि शरीर की सबसे बड़ी धमनी है. इसी aorta की सबसे पहली शाखा है कोरोनरी आर्टरी जो इस शुद्ध रक्त को वापस दिल में लाती है मगर इस बार दिल के कमरों (chambers ) में नहीं बल्कि दिल के दीवारों में- दिल की  सतत कार्यशील मांसपेशियों  के पोषण के लिए. एओर्टा की दूसरी शाखा होती है carotid आर्टरी जो शुद्ध रक्त को मस्तिष्क में पहुँचाने का काम करती है-- तो यहाँ प्रकृति ने  दिल को दीमाग के उपर रखा है. 

कोरोनरी शब्द लैटिन के "cor" से बना है जिसका मतलब है दिल. आपने अस्पतालों में अक्सर CCU  या ICCU लिखा देखा होगा जिसका मतलब है Coronary  केयर unit   या intensive  कोरोनरी केयर unit . 

कोरोनरी धमनी की दो शाखाये होती हैं लेफ्ट और राइट जो दिल के दाहिने और बाएं हिस्से  को रक्त का परिचालन  करती  हैं. अगर इस धमनी में कभी कोई अवरोध आ जाय और दिल की मांसपेशियों को रक्त आपूर्ति बाधित हो जय तो उसे हार्ट attack कहते है. अगर यह अवरोध आंशिक है तो दिल को   आपूर्ति   की कमी तभी महसूस होती है जब दिल ज्यादा काम कर रहा हो - और इसे angina (एंजाइना)  कहते हैं  









दिल की wiring :
पम्प के चलते रहने के लिए सतत विद्युत् सप्लाई भी होनी चाहिए. दिल के अन्दर  अपना   जेनरेटर होता है इसे SA node कहते हैं. यह बाएं आलिन्द के अन्दर दबी छिपी एक छोटी  सी बैटरी है जो रुक रुक कर विद्युतीय आवेग पैदा  करती है, यह आवेग शेष  सारे दिल में एक सूक्ष्म wiring  के द्वारा फैल  जाती है. SA  node किस दर से विद्युतीय आवेग पैदा कर रहा है वह हमारे दिल के धड़कन की दर को निर्धारित करता है. 

 SA  नोड के ऊपर दिमाग का भी कंट्रोल होता है जो इसके दर को तेज़ या कम कर सकती है. अगर SA  नोड या वायरिंग में कोई खराबी आ जाय तो दिल के धरकने की लय में खराबी आ जाती है जो कि कोई दिल की धरकन   को सुन कर या नब्ज़ की जांच कर के पता कर सकता है.   


दिल से सम्बंधित सबसे आम जांच है ई सी जी (ECG electro cardio gram) जो कि दिल के अन्दर विद्य्तीय आवेग के नियमित संचरण का ग्राफ है. अगर दिल के वायरिंग या प्लंबिंग में कोई अवरोध या खराबी है तो इस ग्राफ में वो देखा जा सकता है.





तो आज के लिए बस इतना ही. धन्यवाद.

चित्र गूगल से आभार.










  


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शनिवार, 17 मार्च 2012

दिल की बात 1

दिल या हृदय- शरीर का एक ऐसा अंग जो अनवरत धड़कता रहता है. इसकी धड़कन ही हमारे जीवित होने का प्रमाण है. यह रुका  तो जीवन ख़त्म. 

मां  के  गर्भ  में  जब भ्रूण  करीब  ५-८ सप्ताह का होता है, तब से दिल की धडकन जो   शुरू  होती है तो फिर मृत्यु के साथ ही बंद होती है. कुदरत का करिश्मा है यह मुट्ठी भर का मांसल पम्प जो १०० वर्ष तक लगातार काम कर सकता है. और हम में से हर एक इस चमत्कार को अपने अन्दर लिए घूम रहे हैं. तो फिर आज इसी  की  बात  हो.

कहाँ है दिल?
हमारी छाती की  बायीं तरफ दो फेंफडों के बीच पसलियों के पीछे है अनवरत धडकता दिल. रक्त की बड़ी नलिकाये      इस तक रक्त को लाती हैं और इससे निकल  कर शरीर के बाकी हिस्से तक खून को पहुँचती हैं. 

दिल की संरचना: 


सरलतम शब्दों में कहा जाय तो दिल मांसपेशियों का बना एक पम्प है जिसके चार अलग अलग कक्ष (chambers) हैं. दो कक्ष दाहिनी तरफ और दो बायीं तरफ, या दो उपर के और दो नीचे के कक्ष. उपर के दो कक्ष को Atrium या आलिन्द कहते हैं और नीचे के दो को Ventricle या निलय.

 दाहिना आलिन्द (Right  atrium ) : वैसा रक्त जिसमे ओक्सीज़न कम और CO2  ज्यादा है  शिराओं (veins) से हो कर हृदय के दाहिने आलिन्द में पहुँचता है. आलिन्द निलय की तुलना में कम मांसल होता है. शरीर के विभिन्न हिस्सों से वापस आया रक्त, जिसका वांछित   ओक्सीज़न शरीर के द्वारा उपयोग कर लिया  गया है और जिसमे अनचाहा CO2  डाल दिया गया है वह सबसे पहले हृदय के इस कक्ष में पहुँचता है और फिर यंहा से एक वाल्व से गुजर कर दाहिने निलय   में पहुँचता है.  दाहिने आलिन्द के अन्दर एक ख़ास तरह की गाँठ जैसी संरचना होती है जिसे SA node कहते हैं. यह एक ऐसी  संरचना है जो लगातार रुक रुक कर एक विद्युतीय आवेग पैदा करती है ६० से १२० आवेग प्रति सेकेण्ड. यही   आवेग जब शेष हृदय की मांसपेशियों में फैलता है तो  उनका संकुचन होता है - जिसे हम दिल की एक धड़कन के रूप में महसूश   करते हैं.  

दाहिना  निलय (राईट Ventricle): दाहिने अलिंद में आया खून एक वाल्व से हो कर  दाहिने निलय में पहुँचता   है और जब निलय की मांसपेशी संकुचित होती है तो यही रक्त दोनों फेफड़ों में पम्प हो जाती है , जहाँ रक्त में फिर से ओक्सिजन की आपूर्ति होती है और co2 का निष्कासन. 
दाहिना निलय और बाएं निलय को अलग करती हुई एक मांसल दीवार होती है जिसे interventricular  septum कहते हैं. गर्भ में जब हृदय का निर्माण हो रहा होता है तो कभी कभी इसी दीवार में एक छेद सी रह जाती है जो की एक प्रकार का जन्मजात हृदय रोग  है इसे VSD (वेंट्रिकुलर सेप्टल defect ) कहते हैं. और इसके लिए कई बार ओपरेशन की जरूरत होती है.  

बायाँ आलिन्द (लेफ्ट atrium ): फेफड़ों से पुनः ओक्सीज़न युक्त हुआ रक्त वापस हृदय के बाएं आलिन्द में आता है. फिर एक वाल्व से हो कर यह बाएं निलय में पहुँचता है. इस वाल्व का नाम माइट्रल वाल्व है. रुमेटिक रोग में यही माइट्रल वाल्व संकरा हो जाता है जिसके लिए कई बार ओपरेशन की जरूरत हो सकती है.  

बायाँ  निलय (लेफ्ट Ventricle ): यह हृदय का सबसे मजबूत और मांसल कक्ष है. जब यह संकुचित होता है तो  दाहिने निलय की तुलना में कई गुना ज्यादा दबाव पैदा कर  सकता है. दाहिना निलय सिर्फ फेफड़ों में ही रक्त को पहुंचता है जबकि बायाँ निलय को पूरे शरीर में शुद्ध oxygen  पूरित रक्त की आपूर्ति करनी होती है. 
 
शेष अगले पोस्ट में..